“विश्वमानव की पीड़ा हरनेवाला भारत को बनाना है, और बनेगा… एक सरकार नहीं बनाएगी तो दूसरी, तीसरी… संतों का संकल्प है, आज नहीं तो कल पूरा होकर रहेगा । भारत कोई सदा के लिए शोषित होगा क्या ?
-पूज्य बापूजी
समूचे विश्व को एक सूत्र में बाँधकर भारत को
विश्वगुरु के पद पर आसीन करने का एकमात्र लक्ष्य एवं संकल्प है जिनका…
ऐसे पूज्यपाद सद्गुरु संत श्री आशारामजी बापू ने अपना सम्पूर्ण जीवन देश, धर्म व संस्कृति के लिए समर्पित कर दिया । इसलिए आज भी पूज्य बापूजी की हरि हरि ॐ की धुन पर झूमता करोड़ों का जनसमूह पूज्यश्री के बताये मार्ग पर चलकर नि:स्वार्थ भाव से समाज सेवा में संलग्न है । अपने जीवन के 55 से अधिक वर्ष जिन्होंने समाज के उत्थानार्थ न्यौछावर कर दिए ऐसे पूज्य बापूजी पर यकायक सन 2008 में सिलसिलेदार आरोपों की बौछार शुरू हो गयी, षड्यंत्रकारियों के द्वारा कई आरोपों में फँसाने का प्रयास किया गया लेकिन जब बापूजी इनके किसी षड्यंत्र में फँसते नज़र न आये तब एक लड़की को मोहरा बनाकर पोक्सो जैसे कानून के अंतर्गत पूज्य बापूजी को फँसाने का कुचक्र रचा गया और यहाँ से शुरू हुई संस्कृति रक्षक संत पर जुल्म की दास्तान…
इंदौर (मध्य प्रदेश) 31 अगस्त 2013 की वो रात
जिस रात क़त्ल हुआ नैतिकता व मानवता का और रात 12:00 बजे हजारों भक्तों पर लाठीचार्ज कर, एक वयोवृद्ध संत को उनकी उम्र का लिहाज न करते हुए, उस समय कोई फ्लाइट न होने के बावजूद मार्शल लॉ की रीति अपनाकर बापूजी को अपने निवास स्थान से एयरपोर्ट पर लाकर पूरी रात बिठाये रखा गया । ये वो काली रात थी जिस रात सत्य के ह्रदय पर झूठ महातांडव कर रहा था ।
अधिकांश मीडिया झूठी व मनगढ़ंत ख़बरें दिखाकर देश-विदेश में बैठे भक्तों की भावनाओं से खिलवाड़ करने के साथ-साथ एक विश्वविख्यात संत की पावन छवि को धूमिल करने का पुरजोर प्रयास कर रहा था, पुलिस अपनी करबल-छलबल से की गयी गिरफ़्तारी पर जश्न मना रही थी, भक्तों का ह्रदय त्राहि-त्राहि पुकार रहा था लेकिन इन सबके बीच एक ऐसी पावन छवि जिनके चेहरे की सौम्यता देखते ही बनती थी, वो छवि थी “संत श्री आशारामजी बापू” की । जिनको देखकर ये लग रहा था कि बाहर की हर परिस्थिति से असंग कोई अलमस्त मसीहा हर परिस्थिति का साक्षी बनकर बैठा है ।
अपने गुरुदेव साईं श्री लीलाशाहजी महाराज का अमृत प्रसाद पाये बापू को बाहर की कोई परिस्थिति प्रभावित नहीं कर पा रही थी । अपने साथ इतना बड़ा अन्याय होते हुए भी ये महापुरुष किसी भी प्रकार का प्रतिकार किये बिना पुलिस को पूरा सहयोग देते हुए भक्तों को शांति का संदेश देते जा रहे थे ।
इंदौर से अपने गुरुदेव के पीछे-पीछे हजारों भक्त भी जोधपुर पहुँच गये और बापू के एक इशारे का इंतज़ार करने लगे, अहिंसा के पुजारी ये संतप्रवर चाहते तो एक संकेतमात्र से देश की कानून एवं सुरक्षा व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर सकते थे पर समता की मूर्तिमंत स्वरूप, सबके भले की भावना से द्रवित ह्रदय के धनी, देश में शांति बनाये रखने के लिए सब कुछ चुपचाप सहते गये ।
जिन संत ने संस्कारों का दीप जलाने के लिए अपने जीवन की होली जलाई बदले में उन्हें क्या दिया जा रहा था… “झूठे आरोपों का उपहार” !!
निर्दोष भक्तों को पीटा जा रहा था, भगाया जा रहा था, महिलाओं पर भी लाठीचार्ज किया जा रहा था । ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सब योजनाबद्ध तरीके से हो रहा है ।
01 सितम्बर 2013 को रात 12:30 तक जाँच चालू थी, ये लगातार दूसरी रात थी जब बापूजी को विश्राम नहीं करने दिया जा रहा था और मीडिया समाज के सामने झूठ पर झूठ परोसे जा रहा था कि बापूजी को अंदर पलंग, कूलर आदि सभी सुविधाएँ दी जा रही हैं ।
विश्राम न मिलने के कारण ‘ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया’ की पीड़ा भयंकर रूप लेती जा रही थी लेकिन बापूजी वहाँ भी अपनी रूहानी मस्ती में मस्त गुनगुनाये जा रहे थे “मम दिल मस्त सदा तुम रहना, आन पड़े सो सहना…”
अपनी पीड़ा की परवाह न करते हुए पूछताछ करने आनेवाले पुलिस अधिकारियों को भी बापू प्रसन्नता से सहयोग करते जा रहे थे । जाँच पूरी होने के बाद बापूजी को कोर्ट ले जाया गया और कुछ ही देर में निर्णय दे दिया गया, “जेल”।
लेकिन बापूजी के चेहरे पर वही नीरव शांति, विपरीत परिस्थितियों में सम रहने की शिक्षा आज तक बापूजी जो अपने सत्संगों में देते आ रहे थे आज अपने जीवन में प्रत्यक्ष उसका अनुभव भी करा रहे थे।
अपने गुरुदेव को साजिश के तहत फँसाये जाते देख लाखों-लाखों भाई, माताएं, बहनें उपवास पर उतर आये । देश-विदेश के कई भक्त तो इस सदमें से अपने प्राण तक खो बैठे । इन भक्तों के ह्रदय की वेदना को या तो ये खुद जानते थे या इनके भगवदस्वरूप गुरुदेव ।
दिन पर दिन बीतते चले गये, भक्त जेल पर जाते, दिनभर बाहर अपने गुरुदेव के इंतजार में खड़े रहते, जेल के मुख्य द्वार को पकड़-पकड़ कर रो लेते और शाम को आरती करके अपने निवास स्थान पर लौट आते । अब जेल इनके लिए जेल नहीं बल्कि जेल मंदिर बन चुका है क्योंकि इनके प्यारे गुरुदेव जो यहाँ विराजमान हैं ! जब से बापू जेल में गये तब से लेकर आजतक ये सिलसिला चालू है ।
क्या कभी किसी ने सोचने का प्रयास किया कि जहाँ आज का मानव बिना चमत्कार के किसी को नमस्कार नहीं करता तो क्यों इतने कुप्रचार के बाद भी पूज्य बापूजी के करोड़ों भक्तों की श्रद्धा में रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ा ??
ऐसा तो क्या मिला है इन भक्तों को जो ये किसी भी परिस्थिति में अपने सद्गुरु को छोड़ने को तैयार नहीं ??
षड्यंत्रकारियों के मंसूबें सफल हो रहे थे । फ़ास्ट ट्रैक में शुरू हुए इस केस ने कछुआ चाल से भी धीमी गति पकड़े रखी और लड़खड़ाते स्वास्थ्य के बावजूद बापूजी को एक दिन की भी जमानत नहीं दी गयी। एक आंतंकवादी के साथ भी उदारता का व्यवहार करने वाली हमारी न्यायव्यवस्था ने 25 अप्रैल 2018 को एक ऐसे झूठे केस में सच्चे संत को सजा सुना दी जिसके जजमेंट में जजसाहब ने स्वयं इस सत्य को स्वीकार किया है कि बापूजी के विरुद्ध एक भी प्रत्यक्ष साक्ष्य (Direct Evidence) उपलब्ध नहीं है ।
जोधपुर केस हो या अहमदाबाद केस या दूसरे आरोप… पिछले 10 सालों से आज तक एक भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ है । जिन आरोपकर्ता महिलाओं के बयान पर सजा सुनाई गयी है उन आरोपकर्ता के बयानों में कितना विरोधाभास है देखें सबूतों के साथ…
आश्रम में आया धमकी भरा फैक्स
सन् 2008 में आश्रम में एक फैक्स आता है, जिसमें लिखा होता है कि “50 करोड़ दो नहीं तो जेल जाने को तैयार रहो ।”
ये धमकियां दी जाती हैं अपराधिक गतिविधियों के कारण आश्रम से निकाले गए लोगों के द्वारा ।
इस फैक्स में पैसे न देने पर जमीनों के केस, लड़कियों से छेड़छाड़, तांत्रिक विधि से बच्चों को मारने की धमकियाँ दी गयी…
संत समाज की वेदना..
संत न होते जगत में तो जल मरता संसार..
भारत संतों का देश है । संत हमारी संस्कृति के आधार स्तम्भ हैं । आज विश्व में जो अमन-चमन व आध्यात्मिकता दिख रही है वो सीधे-अनसीधे हमारे ऋषियों की देन है ।
जब-जब समाज धर्म के मार्ग से विमुख हुआ, तब-तब संतों ने ही संस्कृति रक्षा की बागडोर संभाली है लेकिन आज संत समाज आहत है, पीड़ित है, व्यथित है और बार-बार आवाज़ उठा रहा है पूज्य बापूजी के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ़…
सबूत बयां कर गये हकीकत..
पूज्य बापूजी पर दो अलग-अलग क्षेत्राधिकार से एक समय पर एक ही जैसे केस होना, ये कोई संयोग की बात नहीं बल्कि सोची-समझी साजिश है ।
कानून में मौखिक गवाही की अपेक्षा डॉक्यूमेंट्री एविडेंस अधिक विश्वसनीय और महत्वपूर्ण माने जाते हैं और इस षड्यंत्र का खुलासा कर रहे हैं यही Documentary Evidence..
वर्तमान आरोपों के पीछे के तथ्य
- कानूनविद् डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने केस बनावटी पाया
- एफआईआर दर्ज करने के लिए दिल्ली को क्यों चुना? संदिग्ध देरी और दिल्ली पुलिस पर राजनीतिक दबाव
- एफआईआर में “बलात्कार” का आरोप नहीं मेडिकल रिपोर्ट में भी बलात्कार की पुष्टि नहीं
- कथित घटना के समय वहां न तो लड़की और न ही पूज्य बापूजी ही मौजूद थे
- “मैनें यह मेरे परिवार के दबाव में किया” – शिकायतकर्ता का कबूलनामा
- “भोलानंद की आंखें खोलने वाली स्वीकारोक्ति कि उसे बापूजी के खिलाफ बोलने के लिए पैसे दिये गये थे
- “गवाहों की मौत के बारे में झूठा प्रचार। केस के सभी गवाह जीवित हैं।
कानूनविद् डॉ सुब्रमण्यम स्वामी
धर्म परिवर्तन का विरोध करने और उसे रोकने में संत श्री आशारामजी बापू सबसे आगे हैं। उनके खिलाफ पूरा केस बोगस है । यह मेरे कानूनी सलाहकारों का मत और निर्णय है।
“तथाकथित घटना के समय आश्रम में न तो लड़की और न ही पूज्य बापूजी ही उपस्थित थे। जांच में यह तथ्य साबित हुआ है। ”
जांच में टेलीफोन रिकॉर्ड से यह पता चला है कि घटना के समय शिकायतकर्ता लड़की आश्रम में मौजूद नहीं थी। वह अपने प्रेमी के साथ मोबाइल पर बातचीत कर रही थी और यह पाया गया कि वह कहीं और थी तथा उसी समय बापूजी भी वहां मौजूद नहीं थे और खास मेहमान के रूप में एक विवाह समारोह में मौजूद थे ।
“मैं कोई विवाद खड़ा करना नहीं चाहती हूँ लेकिन मेरे माता-पिता इसके लिए दबाव डाल रहे हैं। मुझे जो सिखाया है वही मैं बोल रही हूँ ।”- शिकायतकर्ता ने उसकी सहेली को फोन पर बताया
शिकायतकर्ता की एक सहेली जो उसकी सहपाठी है, ने सामने आकर बताया कि शिकायतकर्ता ने फोन पर उससे बात में कबूल किया कि वह कोई विवाद खड़ा करना नहीं चाहती हैं लेकिन उसके माता-पिता इसके लिए दबाव डाल रहे हैं।” कुछ मीडिया चैनलों ने इस खबर को पल-भर के लिये दिखाया भी लेकिन फिर उससे किनारा कर लिया, ऐसा क्यों?
“मुझे नोटों का बंडल दिखाया गया था, मैं लालच में आ गया था और आशारामजी बापू को फंसाने के लिए मुझे दबाव डालकर पूर्वनियोजित स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए मजबूर किया गया था” – भोलानंद
सूरत में 16 मार्च 2014 को होली संत सम्मेलन में संत-महात्माओं और हजारों लोगों के उपस्थिति में भोलानंद ने हिम्मत करके पूरी कहानी का खुलासा किया कि कैसे उसे कुछ समाचार चैनलों और षड्यंत्रकारियों द्वारा इस्तेमाल किया गया है, कैसे उसे नोटों का बंडल दिखाकर लालच दिया गया, शारीरिक रूप से भी प्रताडि़त कर उसे आशारामजी बापू को फंसाने के लिए पूर्व नियोजित स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए मजबूर किया गया।
भोलानंद ने षड़यंत्रकारियों सहित टीवी चैनलों के मालिकों के असली नाम बताते हुए पूरी कहानी सुनाई कि कैसे उन सबकी टीम आशाराम बापू को हमेशा के लिये सलाखों के पीछे भेजने के प्रोजेक्ट के लिये बिक कर काम कर रही थी ।
“माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सूचीबद्ध किये गये सभी गवाह न केवल जीवित हैं बल्कि अदालत में उनके बयान भी लिये गये हैं।
कई मीडिया चैनलों ने यह प्रचारित किया कि आशारामजी बापू के केस के गवाहों को धमकाया गया है और उन पर हमला किया गया है। इस वीडियो में श्री सुब्रमण्यम स्वामी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सूचीबद्ध किये गये सभी गवाह न केवल जीवित हैं बल्कि अदालत में उनके बयान भी लिये गये हैं। जिन मृत व्यक्तियों को हमारे केस में गवाह बताया जा रहा है केस के दस्तावेजों में कहीं भी उनके नाम नहीं है । इससे यह स्पष्ट है कि कोई व्यक्ति पैसा खर्च करके मीडिया में इस तरह की झूठी खबरें प्रसारित करा रहा है।
एफआईआर के लिए दिल्ली को क्यों चुना?
संदिग्ध देरी और दिल्ली पुलिस पर राजनीतिक दबाव
लड़की उत्तरप्रदेश की है, वह मध्यप्रदेश में पढ़ाई कर रही थी जबकि कथित घटना जोधपुर में होना बताया गया है। तो फिर कथित घटना के 5 दिन बाद दिल्ली के कमला मार्केट पुलिस स्टेशन में एफआईआर क्यों दर्ज की गई और वह भी रात को पौने तीन बजे। पांच दिन का विलंब क्यों?
यह भी बताया गया है कि एफआईआर दर्ज करने से पहले लड़की के माता-पिता ने पूज्य बापूजी से विद्वेष रखनेवाले कुछ राजनेताओं से मुलाकात की थी ।
“एफआईआर में बलात्कार का कोई आरोप नहीं है और दिल्ली से मिली मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है” – डीसीपी अजय पाल लांबा, जोधपुर (अधिकारी को इसके तुरंत बाद हटा दिया गया)
लड़की की शिकायत के आधार पर द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में ‘बलात्कार ’का आरोप नहीं है फिर बापूजी को बलात्कार की गैर-जमानती धारा के तहत क्यों फँसाया गया? लड़की की मेडिकल रिपोर्ट सामान्य है तो फिर मीडिया ने मेडिकल परीक्षण में बलात्कार की पुष्टि होने का झूठ क्यों फैलाया?
जोधपुर पुलिस ने दिनांक 26-08-2013 को लगभग 1 बजे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुष्टि की कि “एफआईआर में लड़की द्वारा बलात्कार का कोई आरोप नहीं लगाया गया है और मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है” तो ऐसा क्या हुआ कि छह घंटे बाद उसी दिन, उसी पुलिस ने धारा 376 हटाने से इनकार कर दिया? और उस पुलिस अधिकारी को मामले की जाँच से क्यों हटा दिया गया? स्पष्ट है कि पुलिस किसी राजनीतिक दबाव में है।
यह भी बताया गया है कि एफआईआर दर्ज करने से पहले लड़की के माता-पिता ने पूज्य बापूजी से विद्वेष रखनेवाले कुछ राजनेताओं से मुलाकात की थी ।