फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ‘महाशिवरात्रि’ (Mahashivratri 2026) के रूप में मनाया जाता है | इस वर्ष 2026 में महाशिवरात्रि 15 फरवरी को मनाया जाने वाला है | यह तपस्या, संयम, साधना बढ़ाने का पर्व है, सादगी व सरलता से बिताने का दिन है, आत्मशिव में तृप्त रहने का, मौन रखने का दिन है |

महाशिवरात्रि देह से परे आत्मा में, सत्यस्वरूप शिवतत्त्व में आराम पाने का पर्व है | महाशिवरात्रि जागरण, साधना, भजन करने की रात्रि है | 

महाशिवरात्रि की उत्पत्ति

इस महारात्रि की उत्पत्ति के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं।

  1. फाल्गुन चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव ने माता पार्वती के संग विवाह करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। इसी वजह से भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की खुशी में महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है।
  2. ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए थे।
  3. माना जाता है कि सृष्टि का शुरुआत इसी दिन से हुई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग के उदय से हुआ।

महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2026) का महत्व

  • ‘शिव’ का तात्पर्य है ‘कल्याण’ अर्थात यह रात्रि बड़ी कल्याणकारी है | इस रात्रि में किया जानेवाला जागरण, व्रत-उपवास, साधन-भजन, अर्थ सहित जप-ध्यान अत्यंत फलदायी माना जाता है |
  • ‘स्कन्द पुराण’ के ब्रह्मोत्तर खंड में आता है : ‘शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है | उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और दुर्लभ है | 
  • लोक में ब्रह्मा आदि देवता और वसिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं | इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य होता है |’

पूजा विधि: महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2026)

  • आज के दिन भगवान साम्ब-सदाशिव की पूजा, अर्चना और चिंतन करने वाला व्यक्ति शिवतत्त्व में विश्रांति पाने का अधिकारी हो जाता है | 
  • जुड़े हुए तीन बिल्वपत्रों से भगवान शिव की पूजा की जाती है, जो संदेश देते हैं कि ‘ हे साधक ! हे मानव ! तू भी तीन गुणों से इस शरीर से जुड़ा है | यह तीनों गुणों का भाव ‘शिव-अर्पण’ कर दें, सात्विक, राजस, तमस प्रवृतियाँ और विचार अन्तर्यामी साम्ब-सदाशिव को अर्पण कर दे |’ बिल्वपत्र की सुवास शरीर के वात व कफ के दोषों को दूर करती है | शिवजी की पूजा के साथ साथ शरीर भी तंदुरुस्त हो जाता है |
  • शिवरात्रि के दिन पंचामृत से पूजा, मानसिक पूजा और शिवजी का ध्यान करने से हृदय में शिवतत्त्व का प्रेम प्रकट होने लगता है | 
  • महाशिवरात्रि धार्मिक दृष्टि से देखा जाय तो पुण्य अर्जित करने का दिन है लेकिन भौगोलिक दृष्टि से भी देखा जाय तो इस दिन ग्रह नक्षत्रों का एक अद्भुत योग बनता है जो कि मनुष्य को आत्मा परमात्मा का ज्ञान करवा कर मानव को महामानव बनाने में बहुत सहयोगी सहयोगी सिद्ध होता है | इस रात्रि में व्यक्ति जितना अधिक जप, ध्यान व मौन परायण रहेगा, उतना उसको अधिक लाभ होता है।
  • संत श्री आसारामजी बापू बताते हैं कि यदि किसी को गठिया हो गया हो और वह इस रात्रि में यदि बं बीज मंत्र का सवा लाख जप करें तो गठिया रोग से मुक्ति मिल जाती है।

महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2026): शिवतत्त्व में अहं का समर्पण और जीवन की उन्नति का महापर्व

पंचमहाभूतों का भौतिक विलास जिस चैतन्य की सत्ता से हो रहा है उस चैतन्यस्वरूप शिव में अपने अहं को अर्पित करने की रात्रि है महाशिवरात्रि जो शिवतत्त्व को अपने भीतर ही प्रकट कर देती है।

जैसे शिवजी हिमशिखर पर रहते हैं अर्थात् समता की शीतलता पर विराजते हैं, ऐसे ही अपने जीवन को उन्नत करने, साधना की ऊँचाई पर विराजमान होने तथा सुख-दुःख के भोगी न बनकर उसका उपयोग करना सिखाती है महाशिवरात्रि। 

शिवजी के मंदिर में नंदी मिलता है – बैल | समाज में जो बुद्धू होते हैं उनको बैल कहा जाता है, उनका अनादर होता है लेकिन शिवजी के मंदिर में जो बैल है उसका आदर होता है | बैल जैसा आदमी भी अगर निष्काम भाव से महाशिवरात्रि का व्रत – उपवास करते हैं तो  समाज की नजर से बुद्धू से बुद्धू व्यक्ति भी देर-सवेर पूजा जायेगा |

महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2026): शिवतत्त्व की समता, निष्कामता और आत्मानुभव की दिव्य यात्रा का संगम

भगवान शिव सदा योग में मस्त है इसलिए उनकी आभा ऐसे प्रभावशाली है कि उनके यहाँ एक-दूसरे से जन्मजात शत्रुता रखनेवाले प्राणी भी समता के सिंहासन पर पहुँच सकते हैं | बैल और सिंह की, चूहे और सर्प की एक ही मुलाकात काफी है लेकिन वहाँ उनको वैर नही है | क्योंकि शिवजी की निगाह में ऐसी समता है कि वहाँ एक-दूसरे के जन्मजात वैरी प्राणी भी वैरभाव भूल जाते हैं | तो तुम्हारे जीवन में भी तुम आत्मानुभव की यात्रा करो ताकि तुम्हारा वैरभाव गायब हो जाय | वैरभाव से खून खराब होता है | तो चित्त में ये लगनेवाली जो वृत्तियाँ हैं, उन वृत्तियों को शिवतत्त्व के चिंतन से ब्रह्माकार बनाकर अपने ब्रह्मस्वरूप का साक्षात्कार करने का संदेश देनेवाले पर्व का नाम है शिवरात्रि पर्व |

शिवरात्रि का पर्व यह संदेश देता है कि जितना-जितना तुम्हारे जीवन में निष्कामता आती है, परदुःखकातरता आती है, परदोषदर्शन की निगाह कम होती जाती है, दिव्य परम पुरुष की ध्यान-धरणा होती है उतना-उतना तुम्हारा वह शिवतत्त्व निखरता है, तुम सुख-दुःख से अप्रभावित अपने सम स्वभाव, इश्वरस्वभाव में जागृत होते हो और तुम्हारा हृदय आनंद, स्नेह, साहस एवं मधुरता से छलकता है |

सारांश

महाशिवरात्रि महोत्सव व्रत-उपवास एवं तपस्या का दिन है । दूसरे महोत्सवों में तो औरों से मिलने की परम्परा है लेकिन यह पर्व अपने अहं को मिटाकर लोकेश्वर से मिल भगवान शिव के अनुभव को अपना अनुभव बनाने के लिए है । मानव में अद्भुत सुख, शांति एवं सामथ्र्य भरा हुआ है । जिस आत्मानुभव में शिवजी परितृप्त एवं संतुष्ट हैं, उस अनुभव को वह अपना अनुभव बना सकता है । अगर उसे शिव-तत्त्व में जागे हुए, आत्मशिव में रमण करनेवाले जीवन्मुक्त महापुरुषों का सत्संग-सान्निध्य मिल जाय, उनका मार्गदर्शन, उनकी अमीमय कृपादृष्टि मिल जाय तो उसकी असली महाशिवरात्रि हो जाय !

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